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ऊर्गम घाटी में पर्यटन की अपार संभावनाए, उर्गम को पर्यटन का केंद्र बनाने की होंगी कोशिश– पुष्पा पासवान।

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चांदी जैसी धरती, सोना जैसी माटी
कति स्वाणी लगदी ऊर्गम घाटी…

ऊर्गम घाटी में धूमधाम से मनाया गया विश्व पर्यटन दिवस
पर्यटन विभाग और ईको विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में मनाया गया।
नकदी फसल और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है ऊर्गम घाटी
पारम्परिक परिधान में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति
रिंगाल के बने विभिन्न उत्पाद रहे आकर्षण का केंद्र।

ऊर्गम!
विश्व पर्यटन दिवस पर पर्यटन विभाग और ईको विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में ऊर्गम घाटी में धूमधाम से पर्यटन दिवस मनाया गया। इस अवसर पर स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा सफाई अभियान चलाया गया और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। इसके अलावा पर्यटन विकास गोष्टी का आयोजन भी किया गया। पर्यटन दिवस पर स्थानीय महिलाओ द्वारा पारम्परिक परिधान में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति दी गयी। चांदी जैसी धरती, सोना जैस माटी, कति स्वाणी लगदी ऊर्गम घाटी… जैसे गीत और जै बद्रीनाथ नाथ की झामको के झुमेलो की सुंदर प्रस्तुति से हर कोई अभिभूत हो गया। वहीं नंदा राजजात की प्रस्तुति न कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिये। महिला मंगल दल बडगिंडा मल्ला, बडगिंडा तल्ला, ल्यारी, ऊर्गम, देवग्राम, गिरा व सरस्वती शिशु मंदिर ऊर्गम नें सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। वही रिंगाल के बने विभिन्न उत्पाद आकर्षण का केंद्र बने रहें।

विश्व पर्यटन दिवस की मुख्य अतिथि नगर पालिका अध्यक्ष गोपेश्वर पुष्पा पासवान द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर उन्होने कहा की ऊर्गम मे पर्यटन की अपार संभावनाए है। इस घाटी को पर्यटन का केंद्र बनाने की कोशिशे की जायेंगी ताकि यहां के लोगो को रोजगार भी मिले और पर्यटक यहां पहुंच कर प्रकृति के अभिभूत कन देने वाले सौंदर्य से रूबरू हो सके।

इस अवसर पर ऊर्गम पहुंचे होटल एशोसियेशन चमोली के अध्यक्ष अतुल शाह ने कहा की ऊर्गम की सुंदरता हर किसी को मोहित करती है। यहां पर्यटन की असीमित संभावनाए है। नगदी फसलो और धार्मिक व साहसिक पर्यटन के लिए ये घाटी हर किसी की पहली पसंद है लेकिन ज्यादा प्रचार प्रसार न होने और मूलभूत सुविधाओं की कमी से पर्यटक यहा कम पहुंच पाता है। उन्होने कहा यहा पंचम केदार कल्पेश्वर भगवान का मंदिर भी है। और वृद्ध बदरी का पौराणिक मंदिर भी। कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इसलिए इस मंदिर में भगवान शिव की ‘जटा’ की पूजा की जाती है। इस कारण ही भगवान शिव को जतधर या जतेश्वर भी कहा जाता है। जटा शब्द का अर्थ होता है ‘बाल’। उर्गम घाटी को उत्तर के कांचीपुरी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां पर भगवान शिव और भगवान विष्णु एक ही जगह रहते हैं। ऊर्गम घाटी में फ्यूंला नारायण मंदिर, बंशीनारायण मंदिर भी है। जबकि यहां से नंदीकुंड, चिनाब फूलो की घाटी और रूद्रनाथ की ट्रैकिंग की जाती है।

राजेन्द्र सिंह नेगी, अध्यक्ष ईको विकास समिति ऊर्गम ने बताया की वर्तमान मे ऊर्गम में 35 होमस्टे का संचालन किया जा रहा है। ऊर्गम में 1988 में पहला होमस्टे निजी प्रयासों से उनके द्वारा तैयार किया गया था। उन्होने कहा की ऊर्गम को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने की आवश्यकता है।

इस अवसर पर नगर पालिका अध्यक्ष गोपेश्वर पुष्पा पासवान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक राहुल, बंड विकास संगठन के अध्यक्ष शम्भू प्रसाद सती, सांसद प्रतिनिधि अयोध्या प्रसाद हटवाल, पूर्व जिला पंचायत सदस्य देवेन्द्र नेगी, प्रदीप फरस्वाण मौजूद थे कार्यक्रम का संचालन ईको विकास समिति ऊर्गम के सचिव रघुवीर नेगी ने किया।